परिचय
विश्वभर में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। जलवायु परिवर्तन का गहराता संकट, पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने चरम मौसम की घटनाओं जैसे बाढ़, सूखा, हीटवेव और चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि देखी है। ताजे वैज्ञानिक शोध और विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, अगर मौजूदा गति से वैश्विक तापमान बढ़ता रहा, तो इससे न केवल पर्यावरणीय बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो सकता है।
हीटवेव और तापमान में बढ़ोतरी
भारत में गर्मियों के मौसम में तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा रही है। इस साल के गर्मी के मौसम में कई हिस्सों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच गया, जिससे जीवन पर व्यापक असर पड़ा। अत्यधिक गर्मी के कारण दिल्ली, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हीटवेव की घटनाएं आम हो गई हैं, जिससे सैकड़ों लोगों की जान चली गई और कृषि पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
- हीटवेव से जन स्वास्थ्य पर प्रभाव
उच्च तापमान और हीटवेव के कारण स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि हुई है। हीटस्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, और अन्य संबंधित बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तापमान की बढ़ोतरी इसी प्रकार जारी रही, तो आने वाले समय में इन घटनाओं की गंभीरता और बढ़ सकती है। - शहरों पर बढ़ते दबाव
भारत के बड़े शहर, जहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा है, हीटवेव की चपेट में ज्यादा हैं। विशेष रूप से दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect) के कारण तापमान में वृद्धि देखी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों की योजना और ग्रीन स्पेस की कमी के कारण इन समस्याओं का समाधान जल्द से जल्द निकालना आवश्यक है।
चक्रवातों और बाढ़ का कहर
जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि हो रही है। हाल के वर्षों में आए चक्रवातों ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में व्यापक नुकसान किया है। इसके अलावा, देश के उत्तरी हिस्सों में भी मानसून के दौरान बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
- बाढ़ से कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर पर असर
असम, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मानसून के दौरान बाढ़ ने खेती और ग्रामीण जीवन पर गंभीर प्रभाव डाला है। बाढ़ के कारण न केवल फसलें बर्बाद हो रही हैं, बल्कि घरों, सड़कों, और अन्य बुनियादी ढांचों को भी भारी नुकसान हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ की घटनाएं न केवल नियमित हो गई हैं, बल्कि उनकी गंभीरता भी बढ़ रही है। - चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता
बंगाल की खाड़ी में हाल ही में आए चक्रवातों जैसे ‘अम्फान’ और ‘यास’ ने तटीय इलाकों में तबाही मचा दी। वैज्ञानिकों के अनुसार, समुद्री सतह के तापमान में बढ़ोतरी के कारण चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि हो रही है, और आने वाले समय में इससे भी अधिक खतरनाक चक्रवातों का सामना करना पड़ सकता है।
जल संकट और सूखा
जलवायु परिवर्तन का एक और गंभीर परिणाम जल संकट और सूखा है। भारत के कई हिस्सों में सूखे की घटनाएं बढ़ रही हैं, और इसके कारण खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सूखे के कारण न केवल किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं, बल्कि भूजल स्तर में भी कमी हो रही है। महाराष्ट्र, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सूखा एक नियमित घटना बन गई है, जिससे ग्रामीण जीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।
- जल संकट के कारण सामाजिक अस्थिरता
सूखे के कारण पानी की कमी ने ग्रामीण इलाकों में तनाव पैदा कर दिया है। कई क्षेत्रों में जल स्रोत सूख गए हैं, और किसानों को फसल उगाने में कठिनाई हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है। - खेती पर प्रभाव और कृषि संकट
सूखे की घटनाओं ने किसानों को आर्थिक संकट में डाल दिया है। सिंचाई के लिए पानी की कमी और अनिश्चित मौसम पैटर्न के कारण खेती करना मुश्किल हो गया है। सरकार द्वारा सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहत योजनाओं की घोषणा की गई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की गति के साथ उन्हें पर्याप्त नहीं माना जा रहा।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास
भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना’ (National Action Plan on Climate Change – NAPCC) के तहत विभिन्न मिशनों की घोषणा की है, जिनका उद्देश्य देश को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षित रखना है।
- सौर ऊर्जा मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। ‘राष्ट्रीय सौर मिशन’ के तहत सौर ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम की जा सके। - जलवायु अनुकूलन योजनाएं
भारत सरकार ने ‘क्लाइमेट अडैप्टेशन’ योजनाओं को भी बढ़ावा दिया है, जिनके तहत गांवों और शहरों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने की रणनीति बनाई जा रही है। इसमें जल संरक्षण, सिंचाई के तरीकों में सुधार, और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के प्रयास शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समझौते
भारत ने पेरिस जलवायु समझौते (Paris Agreement) के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। इसके तहत भारत ने कई देशों के साथ मिलकर कार्बन उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए साझेदारी की है।
- COP26 और भारत की भूमिका
ग्लासगो में आयोजित COP26 सम्मेलन में भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने लक्ष्यों को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने 2070 तक ‘नेट-जीरो’ कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। इसके तहत जीवाश्म ईंधनों से निर्भरता कम करके नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाएगा। - स्वच्छ ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी
भारत ने ‘स्वच्छ ऊर्जा’ और ‘हरित प्रौद्योगिकी’ के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग की पहल की है। इस पहल के तहत, देश ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance – ISA) का नेतृत्व किया है, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना और विकासशील देशों में ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, और इससे निपटने के लिए ठोस और दीर्घकालिक कदम उठाने की आवश्यकता है। बढ़ती गर्मी, बाढ़, चक्रवात, और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाएं देश की कृषि, जन स्वास्थ्य, और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर रही हैं। भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सख्त नीतियों की भी आवश्यकता होगी। जलवायु परिवर्तन का समाधान केवल सरकार का नहीं, बल्कि सभी नागरिकों का भी दायित्व है।