वनों की सुरक्षा पर बढ़ता संकट: भारत के जंगलों को संरक्षण की आवश्यकता

वनों की सुरक्षा पर बढ़ता संकट

परिचय
भारत के वनों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। वनों की सुरक्षा पर बढ़ता संकट वनों की कटाई, अवैध शिकार, और जलवायु परिवर्तन जैसे कारक वनों के नष्ट होने के मुख्य कारणों में से हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल वनों में वनस्पति और जीव-जंतु दोनों का अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र पाया जाता है, जो न केवल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि देश के करोड़ों लोगों की आजीविका और जल संसाधनों को भी संरक्षित करते हैं। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, भारत में वनों की स्थिति बिगड़ रही है, और इसके कारण वन्यजीवों के आवास भी खतरे में आ रहे हैं।

वन कटाई में वृद्धि: एक बड़ा संकट

हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के जंगलों में वृक्षों की अवैध कटाई तेजी से बढ़ रही है। खासकर आदिवासी क्षेत्रों और संरक्षित वन क्षेत्रों में वनों की कटाई ने पर्यावरणीय संकट पैदा कर दिया है। दक्षिणी भारत के पश्चिमी घाट, जो जैव विविधता का हॉटस्पॉट है, वहां भी अवैध लकड़ी की कटाई की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है। सरकारी नीतियों के बावजूद, वनों की अवैध कटाई को रोकने के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।

  1. वन कटाई के प्रभाव
    वनों की कटाई से भूमि के कटाव, मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, वन्यजीवों के आवास में भी कमी आई है, जिससे बाघ, हाथी और अन्य वन्यजीवों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है।
  2. स्थानीय आदिवासी समुदायों पर प्रभाव
    वनों की कटाई का सबसे बड़ा प्रभाव उन स्थानीय आदिवासी समुदायों पर पड़ा है, जो पीढ़ियों से जंगलों पर निर्भर हैं। ये समुदाय न केवल अपने पारंपरिक जीवन यापन के साधन खो रहे हैं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर भी खतरे में पड़ रही है। वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को अपने पारंपरिक वन क्षेत्रों पर अधिकार दिए गए हैं, लेकिन वास्तविकता में इन अधिकारों का सही क्रियान्वयन न होने के कारण उन्हें वनों से विस्थापित किया जा रहा है।

वन्यजीव संरक्षण के प्रयास

भारत के जंगल वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं। बाघों, हाथियों, गैंडों और कई अन्य वन्यजीवों के लिए ये जंगल जीवनदायिनी भूमिका निभाते हैं। वन्यजीव संरक्षण के लिए सरकार ने कई राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित वन क्षेत्र बनाए हैं, लेकिन बढ़ती आबादी और अवैध शिकार ने इन प्रयासों को कमजोर कर दिया है।

  1. बाघों की सुरक्षा
    भारत सरकार ने ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत बाघों की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन कई वन क्षेत्रों में अवैध शिकार और आवासों के नष्ट होने से बाघों की संख्या में कमी देखी गई है। सरकार द्वारा किए गए नए प्रयासों के तहत इन जंगलों की सुरक्षा और वन्यजीव अभयारण्यों का विस्तार किया जा रहा है।
  2. हाथियों का संरक्षण
    पूर्वोत्तर भारत और दक्षिणी क्षेत्रों में हाथियों की सुरक्षा के लिए कई वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किए गए हैं, लेकिन आवासों की कमी और मानव-हाथी संघर्ष के कारण हाथियों की संख्या भी खतरे में है। हाल ही में, असम में हाथियों के लिए एक विशेष ‘एलीफेंट कॉरिडोर’ बनाया गया है, ताकि उनके आवास को संरक्षित किया जा सके और उनके और मनुष्यों के बीच होने वाले संघर्ष को कम किया जा सके।

वन संरक्षण के नए कदम

हाल ही में भारत सरकार ने वनों के संरक्षण के लिए नई योजनाएं शुरू की हैं। इनमें से एक योजना है ‘राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम’ (National Afforestation Programme), जिसका उद्देश्य देश भर में वनों की बहाली और नए जंगलों की स्थापना करना है। इस कार्यक्रम के तहत, राज्य सरकारों के साथ मिलकर स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण और वन संरक्षण गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

  1. कार्बन सिंक बनाने का प्रयास
    जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे वनों के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्ष कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिससे न केवल वन क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम किया जा रहा है।
  2. सामुदायिक वन प्रबंधन
    सरकार ने समुदाय आधारित वन प्रबंधन योजनाओं पर भी जोर दिया है, जिसमें स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण के कार्यों में शामिल किया जाता है। इससे न केवल वनों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि स्थानीय समुदायों को रोजगार और आजीविका के अवसर भी मिलते हैं। ‘जॉइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट’ (JFM) जैसी योजनाओं के तहत स्थानीय लोगों को जंगलों की सुरक्षा और वन उत्पादों के उपयोग के अधिकार दिए गए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और भारत की भूमिका

भारत, अपने वनों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) के तहत भारत वन संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए कई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। हाल ही में भारत ने ‘वैश्विक वन्यजीव संरक्षण सम्मेलन’ में हिस्सा लिया, जिसमें वन्यजीव संरक्षण और जंगलों के महत्व पर चर्चा की गई। इस सम्मेलन में भारत ने अपने जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता जताई।

  1. REDD+ कार्यक्रम
    REDD+ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation) कार्यक्रम के तहत भारत ने वनों की कटाई से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वन संरक्षण के प्रयासों को तेज करने की योजना बनाई है। इसके तहत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आर्थिक और तकनीकी सहायता ली जा रही है, जिससे वनों की स्थिति में सुधार हो सके।
  2. बांस उत्पादन और वन उत्पाद
    हाल ही में सरकार ने ‘बांस मिशन’ की घोषणा की है, जिसके तहत बांस के उत्पादन को बढ़ावा देकर वनों के संरक्षण में मदद की जा रही है। बांस एक टिकाऊ फसल है, जो वनों की कटाई को कम कर सकती है और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है। इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है, बल्कि वनों पर दबाव भी कम हो रहा है।

निष्कर्ष

वनों का संरक्षण भारत की पर्यावरणीय स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। वनों की कटाई, अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार और समुदायों के संयुक्त प्रयासों से ही वनों की सुरक्षा संभव है। वन संरक्षण न केवल पर्यावरण को संरक्षित करने का काम करता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने और देश के वन्यजीवों की रक्षा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वनों की रक्षा से ही हम अपने प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता को संरक्षित कर सकते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए आवश्यक है।

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