भारत में कृषि एक महत्वपूर्ण उद्योग है, स्थायी कृषि के मॉडल पर फोकस, जो न केवल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है, बल्कि लाखों किसानों का जीवन भी इससे जुड़ा हुआ है। हालांकि, पारंपरिक कृषि पद्धतियों में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय असंतुलन, मिट्टी की उर्वरता में कमी और पानी की अधिक खपत हो रही है। इन समस्याओं से निपटने के लिए, भारत में स्थायी कृषि के मॉडल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
स्थायी कृषि क्या है?
स्थायी कृषि वह पद्धति है जो पर्यावरण के अनुकूल होते हुए, कृषि उत्पादकता और किसानों की आय को बढ़ाने पर केंद्रित होती है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाता है, ताकि भविष्य में भी कृषि की निरंतरता बनी रहे। स्थायी कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक उर्वरक, जैविक कीटनाशक और पारंपरिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
स्थायी कृषि के लाभ:
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार:
स्थायी कृषि के मॉडल में मिट्टी के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है। जैविक खेती, कंप्रेस्ड टिलेज (minimizing soil disturbance), और फसल रोटेशन जैसी विधियों से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जाता है, जिससे दीर्घकालिक उत्पादन क्षमता बनी रहती है। - जल संरक्षण:
पारंपरिक कृषि में अत्यधिक पानी का उपयोग किया जाता है, लेकिन स्थायी कृषि में जल प्रबंधन तकनीकों जैसे ड्रिप इरिगेशन और वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे पानी की बचत होती है और जल स्रोतों पर दबाव कम होता है। - पर्यावरण का संरक्षण:
स्थायी कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक विकल्पों का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रदूषण कम होता है। यह न केवल पर्यावरण को बचाता है, बल्कि खेतों में जैव विविधता को भी बढ़ावा देता है। - कृषकों की आय में वृद्धि:
स्थायी कृषि के मॉडल में किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे उनकी लागत कम होती है और लाभ अधिक होता है। इसके अलावा, जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि हो रही है। - जलवायु परिवर्तन से निपटना:
स्थायी कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करती है। इसके अंतर्गत कम कार्बन उत्सर्जन और कूड़ा-करकट की पुनः उपयोग की प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को सीमित किया जा सकता है।
भारत में स्थायी कृषि के प्रयास:
भारत सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGOs) स्थायी कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए:
- नैतिक कृषि पहल:
भारत में कई राज्य सरकारें और संगठन किसानों को जैविक और सस्टेनेबल खेती के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चला रहे हैं। किसानों को जैविक उर्वरकों का उपयोग, फसल विविधता, और जल प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। - कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs) का गठन:
इन संगठनों के माध्यम से छोटे किसानों को स्थायी कृषि के लाभ समझाए जा रहे हैं और उन्हें एकजुट होकर बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त करने में मदद की जा रही है। - प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना:
इस योजना का उद्देश्य जल प्रबंधन के तहत किसानों को ड्रिप इरिगेशन और अन्य जल संरक्षण तकनीकों से जोड़ना है। इससे पानी की बचत होगी और खेती की उत्पादकता बढ़ेगी। - जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग:
देश में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, खासकर शहरी बाजारों में। इसके कारण, किसान अब अधिक जैविक कृषि की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे स्थायी कृषि के मॉडल को बढ़ावा मिल रहा है।
निष्कर्ष:
स्थायी कृषि केवल पर्यावरण के लिए ही लाभकारी नहीं है, बल्कि यह किसानों की आय में भी वृद्धि कर सकती है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। भविष्य में, अगर भारत में स्थायी कृषि को सही दिशा में बढ़ावा दिया जाता है, तो यह कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करेगा और पर्यावरणीय संकटों का सामना करने में मदद करेगा।